वो कालेज के दिन

[postlink]http://vandana-techcare.blogspot.com/2008/10/blog-post_5871.html[/postlink]ये डिग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो
भले चाहे लेलो मुझ से उस का वीसा

मगर मुझे लौटादो कॉलेज का कैंटीन
वो कम चाय का पानी, वो तीखा समोसा

कॉलेज की सबसे पुरानी निशानी
वो चाय-वाला जिसे सारे कहते थे जानी

वो जानी के हाथों की 'कटिंग' चाय मीठी
वो चुपके से जर्नल में भेजी हुई चिट्ठी

वो पढ़ते ही चिट्ठी उसका तिल-मिलाना
वो चेहरे की लाली, वो आंखों का गुस्सा

खरी धुप में अपने घर से निकलना
वो प्रोजेक्ट की खातिर शेहेर भर भटक'न

वो लेक्टुरे में दोस्तों की प्रॉक्सी लगना
वो सर को चिद्रना, वो एरोप्लाने उराना

वो सुब्मिस्सिओं की रातों को जागना जगाना
वो विवा की कहानी, वो प्रैक्टिकल का किस्सा

बिमारी का देतेंशन के टाइम बहाना
वो दूसरों के अस्सिग्न्मेंट्स को अपना बनाना

वो सेमिनार के दिन पैरों का चाट-पटना
वो वर्कशॉप में दिन रात, पसीना बहाना

वो एक्साम के दिन का बेचैन माहौल्पर
वो माँ का विश्वास वो टेअचर का भरोसा

वो हॉस्टल की लम्बी सोहनी रातें
वो दोस्तों से चाट पे प्यारी सी बातें

वो गठेरिंग के दिन और लरना झगरना
वो लार्कियों का यूँ ही हमेशा अकरना

भुलाए नही भूल सकता है कोई
वो कॉलेज, वो जीवन का एक अत्तोत हिस्सा

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